Kaju Ki Unnt Kheti , काजू की उन्नत खेती |

काजू की लाभकारी एवं उन्नत खेती :-
काजू की उन्नत खेती
काजू की उन्नत खेती 

काजू की खेती करने से पहले हम इसके फायदे के बारे में कुछ जानकारी दे रहे है | जिससे आप अपने स्वस्थ्य को ठीक रख सकते है | काजू में बहुत सारे पोषक तत्व मौजूद होते है | जो मनुष्य के शरीर के लिए लाभदायक होते है | काजू को CASHEW के भी कहा जाता है | यह एक फायदेमंद नट्स है | जिसके सेवन से हम शरीर की हड्डियों को मजबूत बना सकते है |  यह बालों के लिए भी उपयोगी है | तो आज कई गुणों से युक्त काजू की खेती के बारे में चर्चा करेंगे |
काजू की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु :- इसे विभिन्न प्रकार की जलवायु में उगाया जा सकता है | यह एक सदाबहार पेड़ है | इसकी खेती समुन्द्र तल से लगभग 1000 मीटर की ऊंचाई तक इसकी खेती कर सकते है | काजू की फसल के लिए आद्र और मध्यम जलवायु अच्छी होती है | यह उष्णकटिबंधीय जलवायु का पौधा है | भारत के दक्षिण भाग का तटवर्ती हिस्सा इसकी खेती के लिए उत्तम है |
काजू की खेती के लिए भूमि का चुनाव :- काजू को हर तरह की भूमि में उगाया जा सकता है | वैसे इसे ढलान वाली भूमि में मृदा अपरदन को रोकने के लिए उगाया जाता है | भारत के पश्चिमी तटवर्ती हिस्से में यह बालू के ढेर पर अच्छी तरह से विकसित हुआ है | इसमें और कोई दूसरी फसल नही उगाई जा सकती | काजू के अच्छे उत्पादन के लिए गहरी दोमट मिटटी सबसे उत्तम मानी जाती है | इस भूमि में यह सफलतापूर्वक वृद्धि कर पाती है | लेकिन इसे क्षारीय भूमि में नही उगाया जा सकता |
 Kaju की उपज देने वाली किस्म
 Kaju की उपज देने वाली किस्म
काजू की किस्मे :- भारत के पूर्वी भाग में उगाई जाने वाली किस्मं :-
1.बी.पी.पी. :- 1  
2.बी.पी.पी. :- 2,
3.बी.पी.पी.:- 3 ,
 4.बी.पी.पी.:- 4 ,
5. बी.पी.पी.:- 5  
6.बी.पी.पी.:- 6
7. बी.पी.पी.:- 7 ,
8. एच, 2 \ 16
इसके आलावा कुछ और किस्मं है जो तमिलनाडू कृषि विश्व विधालय के द्वारा विकिसित की गई है | जैसे :-
1.वी. आर. आइ. :- 1,
2. वी. आर. आइ.:- 2  
1)    3.वी. आर. आइ.:- 3
       भारत के पश्चिमी भाग में उगाई जाने वाली फसल :-
1.वेंगुर्ला :- 1 ,
2. वेंगुर्ला :- 2 ,
 3.वेंगुर्ला :- 3
4.,वेंगुर्ला :- 4 ,
5. वेंगुर्ला:- 5 ,
6. वेंगुर्ला:- 6
7. वेंगुर्ला:- 7
 और गोवा -1 आदि | केरल विश्वविद्यालय के द्वारा विकिसत की गई किस्में निम्न है |
1.अन्कायम :- १ ,
2. प्रियंका ( एच. 1511 ) ,
3. कनका ( एच ,1518 ) ,
4. मडकतरा :- 1 ( बी. एल. ए. ;- 31 – 4 )
5. मडक्कतरा :- 2 ( एन. डी. आर . २-१ ) और धना आदि |
 कर्नाटक में उगाई जाने वाली किस्मं निम्नलिखित है :-
1.     उल्लाल :- 1
2.      उल्लाल :-2
3.     उल्लाल :-3
4.     उल्लाल :-4
5.     एन. आर. सी. सी . सलेक्शन :- १
6.     एन. आर. सी. सी सलेक्शन :- 2 
7.     चिंतामणि
Kaju Ki Buaai Ka Trika
Kaju Ki Buaai Ka Trika

 बुआई का तरीका :- काजू को बीज के द्वारा प्रवर्धन किया जाता है | इसके बीजो को बोने से पहले गड्ढे खोदकर तैयार कर लें | इसके हर एक गड्ढे में दो बीज डाल दें |इसके बीजो को जून के महीने में बोया जाता है जिसे जमने में लगभग 4 से 5 सप्ताह लग जाते है | बीजों के जमने के बाद एक जगह पर  एक पौधा रखा जाता है | पांच वर्ष के बाद इन पौधे में से कुछ पौधे को निकाल दिया जाता है | पौधे को उचित दुरी पर लगाना चाहिए | यदि भूमि में उर्वर शक्ति अधिक है तो एक पौधे से दुसरे पौधे के बीच की दुरी 12 मीटर की रखे | इसके आलावा एक और विधि है जिसका अनुसरण करने से आप कम समय में फसल को तैयार कर सकते है | जिसका वर्णन इस प्रकार से है |
· सोप्टावुड ग्राफटिंग :- इस विधि में पौधे केवल दो साल में तैयार हो जाते है | इसे  जुलाई से अगस्त के महीने में रोपा जाता है | इस विधि के आलावा आप भेट कलम और लेयरिंग विधि का भी उपयोग कर सकते है |  
रोपण की विधि :- काजू के उच्च घनत्व होने के कारण एक हेक्टेयर भूमि पर काजू के 500 पेड़ लगाये जाते है | 
· काजू की फसल में खाद और उर्वरक का प्रयोग :- काजू की अधिक उपज लेने के लिए  इसकी फसल में खाद और उर्वरक का प्रयोग करना बहुत आवश्यक है | लेकिन कुछ किसान इस बात की और ध्यान नही देते | हमे इसकी फसल में खाद का प्रयोग  करना चाहिए |  
काजू की रोपाई करने की विधि
काजू की रोपाई करने की विधि
· काजू की फसल को कीटो से बचाने के लिए :- काजू की फसल पर मुख्य रूप से तना छेदक , थ्रिप्स और सुण्डी जैसे कीटो का कुप्रभाव होता है | इसकी रोकथाम करने के लिए हमे कीटनाशक दवाओं का छिडकाव करना चाहिए | इसके आलावा नीम की पत्तियों का काढ़ा तैयार कर लें इसमे गौमूत्र मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस मिश्रण का छिडकाव काजू की फसल पर करने से किसी भी तरह से कीट नही लगते है | हमे अच्छी गुणवत्ता वाली उपज प्राप्त होती है |  
· काजू की फसल में लगने वाले रोग की रोकथाम करने के लिए :- काजू की पौधे में रोग का प्रकोप हो जाता है |  जिससे काजू की उपज पर बुरा प्रभाव पड़ता है | इसके पौधे पर चूर्णी फफूंदी नामक रोग अधिक लगता है | पौधे में यह रोग फफूदी के कारण होता है | इसकी रोकथाम करने के लिए नीम की पत्तियों का काढ़ा तैयार कर लें इसमे गौमूत्र मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस मिश्रण का छिडकाव रोगग्रस्त पौधे पर करने से पौधे में लगी हुई बीमारी ठीक हो जाती है |
काजू की खेती से प्राप्त उपज
काजू की खेती से प्राप्त उपज 
फसल पकने के बाद तुड़ाई :- काजू की फसल में परागकण किर्या करने के बाद इसे पकने में 60- से 65 दिन का समय लगता है | फल पकने के बाद इसकी तुड़ाई की जाती है |  
उपज की प्राप्ति :- काजू की उपज अच्छी देखभाल और क्षेत्र पर आधारित होती है | इसलिए अलग – अलग भाग में इसकी अलग – अलग उपज प्राप्त होती है | अधिक बारिश वाले भाग में काजू की कम उपज मिलती है | लेकिन अच्छी देखभाल करके हम इसकी उपज को बढ़ा सकते है | काजू के एक पेड़ से हमे 10 से 12 किलोग्राम तक की उपज मिल जाती है | आधुनिक युग में काजू की उन्नत किस्में उपलब्ध है जिनसे हमे एक पेड़ से 15 से 20 किलोग्राम की उपज आसानी से प्राप्त हो जाती है 


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